LG vs Delhi Government: दिल्ली में सरकार और उपराज्यपाल के बीच अधिकारों को लेकर एक बार फिर जंग छिड़ी हुई है. दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने सरकार के कामकाज में उपराज्यपाल के दखल पर आपत्ति जताई है जिसे लेकर दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने उपराज्यपाल अनिल बैजल को चिठ्ठी लिखी है. चिठ्ठी में मनीष सिसोदिया ने आरोप लगाया है कि उपराज्यपाल चुनी हुई सरकार के काम में दखल दे रहे हैं.
पत्र में मनीष सिसोदिया ने लिखा है कि उपराज्यपाल दिल्ली की चुनी हुई सरकार के दायरे में आने वाले कार्यों के बारे में भी मंत्रियों को सूचित किए बिना, संबंधित अधिकारियों को अपनी बैठक में बुलाकर उन्हें दिशा निर्देश दे रहे हैं और बाद में उपराज्यपाल कार्यालय के अधिकारी सरकार के अधिकारियों पर उन निर्णयों को लागू करने के लिए लगातार दबाव बनाते हैं. यहां बात व्यक्तिगत संबंधों और सम्मान की नहीं है. जनतंत्र की रक्षा की है, संविधान की रक्षा की है. हम और आप कल रहे या न रहे. इन पदों पर कल हम और आप बैठे हों या न बैठे हों, लेकिन जनतंत्र हमेशा रहना चाहिए. इस जनतंत्र का बचना जरूरी है. इसलिए मैं आपको यह पत्र लिख रहा हूं.
संविधान में दिए गए अधिकारों का ज़िक्र करते हुए सिसोदिया ने आगे लिखा है कि संविधान में कहीं भी दिल्ली के उपराज्यपाल को यह अधिकार नहीं दिया गया है कि वह दिल्ली की चुनी हुई सरकार के तहत आने वाले विषयों पर संबंधित विभागों के अधिकारियों की सीधे बैठक बुलाएं, निर्णय लें और उन्हें दिशा निर्देश जारी करें. संविधान ने दिल्ली के उपराज्यपाल को केवल तीन विषयों पुलिस, लैंड और पब्लिक ऑर्डर के बारे में निर्णय लेने का अधिकार दिया है. देश की राजधानी होने के नाते दिल्ली के उपराज्यपाल को संविधान ने वीटो पावर दी है कि दिल्ली की चुनी सरकार के किसी निर्णय से सहमत न होने की स्थिति में आप अपनी अलग राय व्यक्त कर सकते हैं, लेकिन उपराज्यपाल के इस अधिकार को स्पष्ट करते हुए सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने बहुत जोर देकर 4 जुलाई 2018 के निर्णय में इस बात को कहा है कि उपराज्यपाल को यह अधिकार बेहद चुनिंदा स्थितियों में यदा-कदा बहुत ही असाधारण परिस्थितियों में इस्तेमाल करने के लिए दिया गया है.
सुप्रीम कोर्ट की पांच वरिष्ठ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अपने आदेश में स्पष्ट कहा है कि दिल्ली के उपराज्यपाल के पास स्वतंत्र निर्णय लेने का कोई भी अधिकार नहीं है, संविधान में उपराज्यपाल के पास केवल दो ही अधिकार हैं, या तो वह चुनी हुई सरकार के निर्णय से सहमत होंगे और उसके अनुसार काम करेंगे और अगर असहमत होंगे तो फिर अपनी असहमति राष्ट्रपति के पास भेजेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि उपराज्यपाल को इस प्रकार असहमत होकर किसी मामले को निर्णय के लिए राष्ट्रपति के पास भेजने का अधिकार बेहद असाधारण परिस्थितियों के लिए ही दिया गया है.
पत्र में मनीष सिसोदिया ने केंद्र और बीजेपी का भी ज़िक्र किया है. मनीष सिसोदिया ने लिखा है कि मैं इस तथ्य से भलीभांति वाकिफ हूं कि उपराज्यपाल पद पर आप की नियुक्ति भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व की सरकार ने की है. जाहिर है, भारतीय जनता पार्टी के लोग, उनके नेता, उनके कार्यकर्ता आपके ऊपर दिल्ली की चुनी हुई सरकार के खिलाफ काम करने के लिए दबाव बनाते होंगे. भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता और नेताओं को जो राजनीति करनी है उनकी वह जानें, लेकिन मैं आप याद दिलाना चाहता हूं कि आप केवल भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता नहीं है आप इस समय दिल्ली के महामहिम उपराज्यपाल हैं. उपराज्यपाल पद पर होते हुए आज आपके पास अवसर है. आप चाहें, तो इस अवसर का इस्तेमाल ऐसे कामों में कर सकते हैं जिससे आने वाली पीढ़ियों को एक कमजोर और लचर लोकतंत्र मिले और आप चाहें तो इस अवसर का इस्तेमाल कर अपने पद का उपयोग जनतंत्र को और मजबूत करने में कर सकते हैं.
पत्र के आखिर में सिसोदिया ने कहा है कि मैं आपसे अनुरोध करना चाहूंगा कि आप दिल्ली की चुनी हुई सरकार के अधीन आने वाले विषयों में निर्णय लेने की गतिविधियों को बंद करें, इन विषयों पर अधिकारियों की बैठक बुलाना और उन्हें निर्देश देना भी बंद कर दें. आपकी यह बैठक और इनमें लिए जाने वाले निर्णय ना सिर्फ असंवैधानिक बल्कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन भी है. चुनी हुई सरकार को दरकिनार करके आपके द्वारा अधिकारियों की मीटिंग बुलाया जाना और उसमें निर्णय लेना जनतंत्र की हत्या है. आपके ऊपर राजनीतिक दबाव चाहे जो भी हो लेकिन आप दिल्ली के उपराज्यपाल के पद पर रहते हुए वही करें जो जनतंत्र को और मजबूत करने के लिए जरूरी है.